जानें हस्तरेखा से भविष्य :
जानें हस्तरेखा से भविष्य :
भाग्यरेखा पर टूटन या टूटी-फूटी भाग्यरेखा
( आमूलचूल परिवर्तन )
शनिरेखा पर टूटन सबसे खराब मानी गई है।
जिस अवस्था में शनिरेखा पर टूटन दिखलाई पड़े, उस समय जातक का व्यक्तित्व भारी रूप से प्रभावित होता है।
ऐसे में यदि रेखा अपना रुख बदल दे, नये बदलाव के साथ प्रारम्भ हो अथवा बिलकुल ही प्रारम्भ न हो तो ये टूटन जातक के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन लाती है।
यदि शनिरेखा में लगातार टूटन हो तो जातक के विकास में, उन्नति के मार्ग में लगातार प्रतिकूल परिवर्तन आते हैं और उसका जीवन श्रमपूर्ण एवं कष्टमय हो जाता है।
स्मरण रहे कि प्रत्येक टूटन अलग-अलग दुर्भाग्य को आमन्त्रित करती है।
यदि टूटन के बीच का भाग लम्बा है तो दुर्भाग्य, काल लम्बा है और टूटन छोटी है तो अवधि छोटी है।
टूटन की क्षतिपूर्ति यदि अन्य रेखाओं द्वारा हो गई है तो दुर्भाग्य के दौरान जातक को राहत मिल जायेगी।
उसका नुकसान नहीं होगा।
शनिरेखा की गणना करके उपर्युक्त काल का परिमापन किया जा सकता है।
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भाग्यरेखा पर आड़ी रेखाएं :
( व्यक्तित्व विकास में बाधा )
शनिरेखा पर उदित आड़ी रेखाएं जातक के व्यक्तित्व विकास में बाधा डालती हैं।
प्रत्येक आड़ी रेखा अपने-आपमें एक स्वतन्त्र व्यवधान है।
रेखा की गहराई व्यवधान की गम्भीरता को बतलाती है।
यदि आड़ी रेखाएं हलकी हैं और शनिरेखा को ज्यादा गहराई से नहीं काटतीं, केवल ऊपर से निकलती मात्र हैं तो ये विकास में लगातार छेड़छाड़ व हलके विघ्न को ही बतलाती हैं।
यदि ये आड़ी रेखाएं शनिरेखा को दो भागों में ही विभक्त कर दें तब तो बहुत बड़ी चुनौती सामने आयेगी जो जातक की सफलता की उम्मीद को ही तोड़ देगी।
जीवन में ऐसा कुअवसर कब आयेगा, इसका पता शनिरेखा की गणना के माध्यम से चल सकता है। घटना की गम्भीरता का पता रेखा की गहराई बतायेगी।
घटना के कारणों का पता दूसरी रेखाएं व चिह्नों से चलेगा।
घटनाओं का परिणाम क्या होगा, इसका पता शनिरेखा के अन्त (अन्तिम स्थल ) से चलेगा।
भाग्यरेखा प्रारम्भ में जंजीराकृति, शुक्र स्थल पर सितारा, मस्तिष्करेखा पर द्वीप, जीवनरेखा से अन्य रेखा का उदय....!
( माता - पिता की मृत्यु से परेशानी )
उपर्युक्त परिस्थितियों की तरह शनिरेखा प्रारम्भ में विकृत हो तथा प्रभाव रेखा के अन्त में एक सितारा हो, जहां सितारा हो वहीं से जीवनरेखा में से एक शाखा भी निकल रही हो, जो एक आकस्मिक रेखा तक पहुंचे और मस्तिष्क रेखा पर उस जगह एक द्वीप हो।
इन परिस्थितियों में जातक के माता-पिता की मृत्यु ने उसके ( जातक के ) उठान को रोका है और जातक मानसिक रूप से काफी परेशान भी उस अवस्था में रहा है।
भाग्यरेखा प्रारम्भ में जंजीराकृति व शुक्रस्थल पर सितारा
( बचपन में कष्ट )
शनिरेखा का प्रारम्भिक अवस्था में विकृत होना बचपन में ही मुसीबतों को बतलाता है।
यदि शनिरेखा प्रारम्भ में ही श्रृंखलाकार हो तथा शुक्र स्थल पर एक प्रभाव रेखा दिखलाई पड़े जिसके अन्त में सितारा हो तो जातक के माता-पिता बचपन में ही गुजर जाते हैं जिसके कारण जातक का भविष्य छोटी आयु में ही अन्धकारमय हो जाता है।
जिस उम्र में माता-पिता की मृत्यु होगी या हुई है, यह तो प्रभाव रेखा पर दिखाई देने वाले सितारे की दूरी के समकक्ष जीवनरेखा को चिह्नित करके नापी जा सकती है।
जातक के जीवन में सुखद समय की कब शुरुआत होगी, यह शनिरेखा की सही स्थिति को चिह्नित करके बतलाया जा सकता है।
जब प्रारम्भ में जंजीराकृति पर बाद में उत्तम हो भाग्यरेखा
(गंभीर रुकावटें)
शनिरेखा पर उपस्थित सभी प्रकार के दोष एवं विकारों का सूक्ष्म अध्ययन करना जरूरी है, क्योंकि ये बतलायेंगे कि व्यक्ति के जीवन में किस प्रकार की बाधाएं, विघ्न व रुकावटें सम्भावित हैं तथा वे रुकावटें कितनी हद तक गम्भीर हैं।
हथेली के अन्य भागों में इन दोषों का सन्दर्भ ढूंढ़ा जा सकता है तथा समझदारी के द्वारा इन दोषों का उपाय व समाधान भी किया जा सकता है तथा शनिरेखा पर ज्यादातर दोष प्रारम्भ में ही पाये जाते हैं; क्योंकि प्रारम्भिक काल बचपन को ही उद्घाटित करता है।
ज्यादातर बच्चे बचपन में इतने मेधावी नहीं होते कि उनकी कुछ उपलब्धियां उल्लेखित हो जायें।
बचपन की अवस्था ( प्रारम्भिक काल ) में शनिरेखा का दूषित पाया जाना बाल्यावस्था की बीमारी या माता-पिता की मृत्यु, उनके आर्थिक पक्ष में दीवालियापन, बच्चे के विकास में बाधक हो सकती है।
बच्चे का माता-पिता से पृथक रहना, उसके बहुत दूर हॉस्टल या ऐसी स्थिति में रहना जिससे वह अपने-आपको दुःखी व बेचैन महसूस करता हो।
ऐसे अनेक कारण बच्चे के सही विकास में बाधा का कार्य कर सकते हैं।
जंजीराकृति भाग्यरेखा
( भाग्योदय में रुकावटें )
श्रृंखलाकार शनिरेखा बतलाती है कि जातक के विकास में बहुत-सी रुकावटें हैं।
यदि यह द्वीपाकार श्रृंखला रेखा की सम्पूर्ण लम्बाई तक विद्यमान है तो जातक कठोर परिश्रमपूर्वक जीवन जीयेगा।
तथा जीवन में अनेक दिक्कतों व निराशाजनक स्थितियों से सामना करना पड़ेगा।
यदि श्रृंखला कुछ दूरी तक ही है तो आगे चलकर सुधरेगा।
भाग्यरेखा का उठान मस्तिष्करेखा के बाद
( भाग्योदय देरी से )
भाग्यरेखा जब मस्तिष्करेखा के बाद उदय होती हुई दिखलाई दे तो जातक का भाग्योदय 36 वर्ष की आयु के बाद होता है। व्यक्ति नये कार्यों के द्वारा उन्नति की ओर बढ़ता है।
मुख्य भाग्यरेखा न होने पर इस भाग्यरेखा के प्रारम्भ होने की आयु से कई बार 45 वर्ष की आयु से व्यक्ति का अचानक भाग्योदय हो जाता है।
ऐसे जातक का प्रारम्भिक जीवन भले ही संघर्षपूर्ण रहा हो पर इस आयु में उसे प्रत्येक कार्य में लगातार सफलता मिलनी प्रारम्भ हो जाती है।
घर में, जाति में, समाज में अचानक प्रतिष्ठा बढ़ती है। जातक उदार मनोवृत्ति वाला हो जाता है तथा उसके सौहार्दपूर्ण व्यवहार से सभी प्रभावित होने लगते हैं।
भाग्यरेखा हथेली के मध्य भाग से प्रभाव रेखा के अन्त में सितारा
(भाग्योदय में देरी)
शनिरेखा हथेली के मध्य भाग से स्पष्टतः उठती हुई दिखलाई दे रही है, कोई अन्य अशुभ रेखा हाथ में नहीं है; परन्तु पैतृक प्रभाव से रेखा का अन्त एक सितारे से होता हुआ दिखलाई दे तो जातक के माता-पिता की मृत्यु बचपन में ही हो जाती है, जिसके कारण जातक का भाग्योदय सही समय पर नहीं हो सकता और भाग्यरेखा हथेली के मध्य पर प्रकट हुई।
स्मरण रखें, शनिरेखा पर दिखलाई देने वाले सभी संकेत जातक के आर्थिक पहलुओं को स्पष्ट करते हैं। इसके बाद शनि रेखा की बनावट व आकार-प्रकार पर ध्यान देना चाहिये।
यदि रेखा लम्बी तथा गहरी नहीं, अर्थात दूसरी रेखाओं की तुलना में गहरी नहीं है तो समझें कि शनिरेखा उतनी शक्तिशाली नहीं है, जितनी होनी चाहिये।
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शनिरेखा हथेली के मध्य भाग से एवं मस्तिष्करेखा विकृत
(सही सोच से भाग्योदय)
यदि शनिरेखा हथेली के मध्य भाग से शुरू होती है और मस्तिष्क रेखा अपनी प्रारम्भिक अवस्था में विकृत हो तो जातक का जो कार्य मस्तिष्क की कमजोरी के कारण रुका हुआ था वह जहां मस्तिष्क रेखा ठीक अवस्था को प्राप्त होगी उसी बिन्दु से जातक का भाग्योदय प्रारम्भ होगा।
हथेली के मध्य भाग से प्रारम्भ भाग्यरेखा एवं क्षीण आयुरेखा
( व्यापार - व्यवसाय में उन्नति )
मान लीजिये प्रारम्भ में शनिरेखा अदृश्य है तो उस काल में जीवनरेखा भी पतली या नाजुक होगी।
तब आपको पता चल जायेगा कि इस जातक ने प्रारम्भिक काल में कम काम किया क्योंकि उसका स्वास्थ्य नाजुक था।
ज्यों ही शनिरेखा का प्रभाव शुरू होगा, जीवनरेखा की नाजुकता समाप्त हो जायेगी तथा वहीं से जीवन में उपलब्धियों का उत्पादन शुरू होगा।
यदि जीवनरेखा क्षीण ( पतली ) है तो जहां से जीवनरेखा पुनः गहरी व स्पष्ट होना प्रारम्भ होती है और शनिरेखा की भी यही स्थिति हो तो यही वह बिन्दु है जहां से जातक का व्यापार व्यवसाय उन्नति के शिखर की ओर अग्रसर होगा तथा जातक में कार्य करने की विशेष शक्ति भी बढ़ेगी।
यहां यह स्मरण रखना जरूरी है कि शनि रेखा की आयु गणना नीचे से प्रारम्भ होती है तथा जीवनरेखा की गणना ऊपर से प्रारम्भ होती है।
पंडारामा प्रभु राज्यगुरु
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