जानें हस्तरेखा से भविष्य :
जानें हस्तरेखा से भविष्य... 137
उत्तम भाग्य रेखा
(उत्पत्ति)
मणिबन्ध स्थल से उदित होकर शनि पर्वत तक निर्दोष रूप से पहुंचने वाली रेखा उत्तम भाग्य रेखा की श्रेणी में आती है। इसे Rascetterian Fate-line कहते हैं।
(परिणाम)
ऐसे जातक का जन्म ऊंचे कुल में होता है तथा अपने परिश्रम व पुरुषार्थ से स्वयं का भाग्योदय करता है।
मैं इसे सर्वश्रेष्ठ भाग्यरेखा मानता हूं।
ऐसे जातक की कुण्डली के केन्द्र-त्रिकोण में पापग्रह अच्छी स्थिति में होते हैं।
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जानें हस्तरेखा से भविष्य... 138
उत्तम भाग्य रेखा
(उत्पत्ति)
हथेली के मध्य से जीवनरेखा के आस-पास से कोई रेखा उदित होकर निर्दोष रूप में बुध पर्वत की ओर जाती हो तो यह भी उत्तम भाग्य रेखा की श्रेणी में आती है। इसे Mercurian fate-line कहते हैं।
(परिणाम)
ऐसा व्यक्ति व्यापार करेगा एवं व्यापार के द्वारा ही इसका सुन्दर-सुखद भाग्योदय होता है।
बड़े-बड़े उद्योगपतियों के हाथ में यह रेखा देखी गई है।
इसे बुधरेखा या स्वास्थ्यरेखा न समझें। ऐसे जातक की कुण्डली में 'मूडयेण' होता है।
जानें हस्तरेखा से भविष्य... 139
उत्तम भाग्य रेखा
(उत्पत्ति-स्थान)
चन्द्रमा से निकलकर शनि पर्वत तक जाने वाली निर्दोष रेखा उत्तम भाग्यरेखा की श्रेणी में आती है। इसे Saturn-line भी कहते हैं।
(परिणाम)
विवाह के बाद भाग्योदय। ऐसे जातक की जन्मकुण्डली में शनि + चन्द्र की स्थिति केन्द्र + त्रिकोण में बहुत ही सुदृढ़ होती है।
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उत्तम भाग्य रेखा
(उत्पत्ति-स्थान)
चन्द्रमा के पर्वत से उदित होकर सूर्य पर्वत तक जाने वाली निर्दोष रेखा, उत्तम भाग्य रेखा की श्रेणी में आती है। इसे Apollo-line भी कहते हैं।
(परिणाम)
जीवनसाथी सौन्दर्य, प्रेम व प्रतिभा' सम्पन्न विवाह के बाद भाग्योदय। ऐसे जातक की कुण्डली में सूर्य की स्थिति केन्द्र-त्रिकोण में बहुत सुदृढ़ होती है।
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उत्तम भाग्य रेखा
(उत्पत्ति-स्थान)
चन्द्र पर्वत से उदित होकर गुरु पर्वत की ओर जाने वाली निर्दोष रेखा उत्तम भाग्यरेखा की श्रेणी में आती है।
इसे Jupiterian fate line भी कहते हैं।
(परिणाम)
उत्तम शिक्षा व विवाह के बाद भाग्योदय। ऐसे जातक की जन्म कुण्डली प्रायः 'हंसयोग' पाया जाता है।
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हथेली के मध्य भाग से प्रारम्भ शनि पर्वत की ओर जाती हुई भाग्यरेखा
(मध्यमायु से भाग्योदय)
कई बार शनिरेखा हथेली के नीचे से प्रारम्भ न होकर हथेली के मध्य भाग में कुछ ऊपर से प्रारम्भ होती है।
इस केस में जातक के जीवन का पूवार्द्ध नगण्य-सा होता है।
जातक का बचपन ही गौरवशाली नहीं होता परन्तु जवानी में प्रवेश करते-करते जब इस रेखा का प्रारम्भिक काल प्रभावित होगा तब जातक सफलता की ओर प्रवेश करते हुए उपलब्धियां अर्जित करेगा।
ऐसे जातकों के बारे में कहा जा सकता है कि ये 'मुंह में सोने के चम्मच' के साथ पैदा नहीं हुए हैं। अर्थात जन्म से धनाढ्य या भाग्शाली नहीं हैं।
भाग्यरेखा जब शुरू होती है उसी समय जातक का स्वर्णिम काल प्रारम्भ होता है।
शनि रेखा की अनुपस्थिति बतलाती है कि लगातार प्रयत्न की अत्यन्त आवश्यकता है।
पंडारामा प्रभु राज्यगुरु
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